प्रभुप्रेमी जी का परिचय

प्रभुप्रेमी जी का परिचय : एक नजर

ऋषियों, मुनियों, महन्तों की जन्मदायी एवं सनातन धर्म की पावनधरा भारत भूमि पर हमेशा युग पुरुषों का अर्विभाव होता रहा है। ऐसे ही अलौकिक आचार्य राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त, गौ सेवी, प्रभु सेवी श्रद्धेय श्री कन्हैयालालजी पालीवाल का जन्म राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखामण्डी में जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर 1964 में हुआ। आपको भागवत करने की प्रेरणा अपने स्वपन द्वष्टान्त से मिली है। भागवत के प्राचीन पीठ शुक्रताल में कथा करने के लिए सुखदेव आश्रम शुक्रताल में आमंत्रित होने वाले आप देश के छठे सन्त है, भागवत कथा के दौरान आपने गौशाला शैली के माध्यम से धन एकत्र कर देश की 66 गौशालाओं कों लाभान्वित किया है आपके प्रवचन टी.वी. के विभिन्न चैनलों पर प्रसारित होते रहे है हमारे लिए परम् सौभाग्य की बात है कि ऐसे प्रभुप्रेमी, गौसेवी सन्त शिरोमणि के सानिध्य में भागवत कथामृत महोत्सव का आयोजन इस पुण्य नगरी में होने जा रहा है आप और हम मिलकर इस धार्मिक उत्सव ज्ञान यज्ञ का लाभ उठायें।

कथा प्रवक्ता-गो सेवा प्रेरक भागवताचार्य श्रद्धेय श्री कन्हैयालाल जी पालीवाल "प्रभुप्रेमी" का जन्म नोखामंडी (बीकानेर) में श्री गुलारामजी पालीवाल के घर हुआ। वीर प्रसूता धरा, भक्ति और शक्ति की खान राजस्थान प्रदेश के भागवत कथा वाचक के रूप में सम्पूर्ण देश में "प्रभुप्रेमी" महाराज की विशिष्ट पहचान है।

करुण शैली के कथाकार, ओजस्वी वक्ता, लालित्यपूर्ण सरल व सरस कथा वाचक श्री प्रभुप्रेमीजी भागवत कथा के चौथे दिन गौ सेवार्थ "झोली" का आयोजन करवाते हैं। झोली में श्रोताओं द्वारा जो राशि भेंट की जाती है वह सम्पूर्ण राशि गो-सेवार्थ गो शाला को भेंट की जाती है। किस गोशाला को राशि देनी है? यह तय करने की जिम्मेदारी आयोजन समिति की रहती है। आयोजक जिस गो-शाला को देना चाहें उसे दे सकते हैं। प्रभुप्रेमीजी गो शाला का नाम तय नहीं करते हैं।

भागवत कथा करने की प्रेरणा स्वपण में हुए द्वष्टांत से मिली। भारत के विभिन्न प्रदेशों में भागवत कथा वाचन कर चुके श्री कन्हैयालालजी का "प्रभुप्रेमीजी" नाम भक्त श्रोताओं द्वारा रखा गया है। प्रभुप्रेमीजी नाम से इन्हें श्रोता भक्तों ने अलंकृत किया है।

प्रभुप्रेमी महाराज द्वारा राजस्थान व असम में गो-शालाएं खुलवाई जा चुकी हैं। राजस्थान, आसाम, गुजरात व पं. बंगाल की लगभग 30 गो शालाओं को आर्थिक सहयोग ( नगद राशि व चारा आदि ) दिया जा चुका है। हजारों लोगों को नशा छुड़ा चुके हैं।

कथा में आने वाले चढ़ावे के वस्त्रों को गरीब परिवारों में वितरित करवाते हैं।

इनकी कथा का उद्देश्य भगवन्ननाम प्रचार, गो सेवा की प्रेरणा देना, गरीब परिवारों को वस्त्र वितरण, नशा मुक्ति का संदेश तथा युवा वर्ग को सनातन संस्कृति से जोड़ना है।

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श्रीमद्भागवत कथा

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